दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) में आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” (पार्टीशन हॉररस रेमेमब्रेन्स डे) मना रहा है | जन संपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मो. मुदस्सीर आलम ने इसी क्रम में विवि के ऐतिहासिक अध्ययन और पुरातत्व विभाग द्वारा आईजीएनसीए (नई दिल्ली) के साथ संयुक्त तत्वाधान में ‘विभाजन की त्रासदी’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया | सीयूएसबी के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह के संरक्षण में आयोजित संगोष्ठी में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशि प्रताप शाही मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए |
प्रो. शशि प्रताप शाही ने अपने सम्बोधन में कहा कि विभाजन के कई दुष्परिणाम रहे हैं जिसके लिए अंग्रेज़ पूरी तरह ज़िम्मेदार हैं | धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान का बटवारा एक बहुत ही दुःखदायक घटना थी | इस विभाजन की वजह से साम्प्रदायिक दंगे हुए और इस साम्प्रदायिक मानसिकता ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जान ले ली | विभाजन की वजह से मानवीय मूल्यों का पतन हुआ, आज़ादी के समय हिन्दू – मुस्लिम समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए और लाखों लोगों की जान चले गई | भले ही विभाजन करीब 75 वर्ष पहले हुए लेकिन इसका असर आज तक दिख रहा है और हमारी अर्थव्यवस्था आज तक इसकी भारपाई कर रही है | विकास के बावजूद सम्प्रदायक्तिया, गरीबी, बेरोज़गारी आदि बड़ी समस्याएं हैं और हम सबके सामने बड़ी चुनौती है | वर्तमान सरकार के विदेश नीतियों से मुझे यह आशा है कि आने वाले 25 वर्षों में जब हम 2047 में आज़ादी के 100 वीं वर्षगांठ मनाएंगे तो भारत एक विश्वगुरु के रूप में ज़रूर उभरेगा |
अध्यक्षीय भाषण में माननीय कुलपति प्रो. के. एन. सिंह ने कहा कि आज भारत एक जियो – कल्चर शक्ति के रूप में उभरा है जिसमें समावेशी संस्कृति का अहम योगदान है | हमारे राष्ट्रवाद की विशेषता है कि यह सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित है और हमारी समावेशी संस्कृति जो सबको साथ लेकर चलता है और यह पूरे विश्व के लिए उदाहरण है | माननीय प्रधानमंत्री ने पिछले साल स्वंत्रता दिवस पर लालकिले से अपने भाषण में ‘पंच प्रण’ के अंतर्गत दिया था और उनमें देशवासियों के बीच एकता पर ज़ोर दिया था | आज ज़रूरत इस बात की है कि हम सब भारत के लोग विभाजन का माहौल पैदा करने वाली ताकतों का डँट कर मुक़ाबला करें | हमें विभाजन की त्रासदी को याद करते हुए जाति, समुदाय, धर्म में विविधताओं के बावजूद हमें समावेशी संस्कृति को और अधिक विकसित करने के आवश्यकता है तभी देश आगे बढ़ सकता है | अंत में कुलपति महोदय ने कहा कि “आजादी की खुशी ऐसी ना हो की हम उसमें खो न जाएँ और जो खोया हुआ है उसे भूल ना जाएँ” |
इससे पहले कार्यक्रम का औपचारिक उद्घाटन के पश्चात डॉ. नीरज कुमार सिंह, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग द्वारा विषय का परिचय प्रस्तुत किया गया । वहीं इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुधांशु कुमार झा ने अपने संबोधन में विभाजन की त्रासदी को याद करते हुए कहा कि कहीं-न-कहीं उस समय का नेतृत्व इसके लिए ज़िम्मेदार रहा है |
प्रो. प्रणव कुमार, डीन, सोशल साइंसेज ने विभाजन के राजनीतिक आयाम को साझा किया, वहीँ विधि विभाग के प्रो. अशोक कुमार ने क़ानूनी आयाम को साझा किया | इस अवसर पर भूविज्ञान विभाग के डॉ. विकल कुमार सिंह, एवं उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य प्रो. रामजी मौर्य तथा प्रो. हरेश प्रताप ने भी अपने विचार साझा किये | संगोष्ठी में विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, संकायाध्यक्ष, शिक्षकगण, कर्मचारीगण एवं छात्र मौजूद थे | अंत में इतिहास विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अनिल कुमार ने कार्यक्रम का सारांश प्रस्तुत किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीरज कुमार सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया |